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ब्राह्मी एक प्रकार का पौधा है जिसकी खेती आयुर्वेदिक दवाइयों की दुनिया में एक मुख्य फसल के तौर पे की जाती है। ब्राह्मी का पौधा गीले, उष्णकटिबंधीय वातावरण में उगता है। यह पानी के नीचे भी फल-फूल सकता है इसकी इस खूबी के कारण यह मछलीघरों में इस्तेमाल किये जाने के लिए मशहूर है। भारत में यह आयुर्वेदिक चिकित्सकों द्वारा सदियों से इस्तेमाल की जा रही है, इसकी पहचान यह है की इसकी एक टहनी में कई सारे पत्ते होते हैं और इसके फूल छोटे व सफ़ेद रंग के होते हैं।
याददाश्त की क्षमता बढ़ाना
बुद्धि को तीक्ष्ण करना
खून साफ़ करके त्वचा को बेहतर करना
मानसिक तनाव दूर करना
नींद को गहरी करना
ब्राह्मी पर्ल्स के रूप में भी उपलब्ध है और ६० व् १२० गोली की पैकिंग में आती है। कुछ चिकित्स्क इसे रोज़ाना लेने में भी कोई हर्ज़ नहीं बताते, यह उन आयुर्वेदिक दवाइयों में से है जिसका इस्तेमाल एहतियात के लिए भी किया जाता है और जिसका मन, बुद्धि या शरीर पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता, हालांकि इसका सेवन चिकित्सक की सलाह से ही करना चाहिए। चिकित्स्क इसे दिन में दो बार लेने की भी सलाह दे सकते हैं।
ब्राह्मी चिकित्स्क न सिर्फ ऊपर लिखे फायदों के लिए बल्कि के मानसिक तनाव दूर के लिए भी देते हैं। माना जाता है की मानसिक तनाव की स्थिति लगातार इंसान की ऊर्जा के गिरने से आती है और ब्राह्मी उस ऊर्जा को उठाने में सहायक होते हैं। यह रक्तचाप को संतुलित बनाये रखने में भी काम आती है।
जिस तरह के सवाल सभी आयुर्वेदिक दवाइयों को लेकर उठते हैं वही सवाल ब्राह्मी को लेकर भी आ सकते हैं जैसे की, क्या इसे ऐलोपैथिक या होम्योपैथिक दवाइयों के चलते लिया जा सकता है?, इसके दुष्प्रभाव क्या क्या हैं?, इसकी मात्रा कितनी और कब कब होनी चाहिए?,इत्यादि।
अगर आप कोई ऐलोपैथिक दवाई ले रहे हैं तो कृपया अपने चिकित्सक की सलाह से ही इसे लें, परन्तु अगर आप होम्योपैथिक दवाई ले रहे हैं तो उसके साथ ब्राह्मी कोई हानि नहीं पोंहचाएगी।
आयुर्वेद और आयुर्वेदिक दवाइयों पर पूणर्तः शोध होना अभी बाकी है लेकिन जितनी जानकारी अब तक मौजूद है उस हिसाब से ब्राह्मी के ख़ास दुष्प्रभाव सामने नहीं आये हैं।
आमतौर पर चिकित्स्क इसे दिन में एक या दो बार भोजन से १५ मिनट पहले मौजूदा दोष के मुताबिक़ गरम पानी, दूध या अन्य चीज़ के साथ लेने की सलाह देते हैं। इसकी मात्रा एक बार में एक गोली भी हो सकती है और दो गोली भी।
अब काफी बड़ी बड़ी कंपनियों ने इसका उत्पादन शुरू किआ हुआ है, जैसे पतंजलि, श्री श्री आयुर्वेदा, बैद्यनाथ, डाबर , हिमालय आदि।
ब्राह्मी का चूर्ण ब्राह्मी और कई अन्य वस्तुओं को एक साथ पीसकर बनाया जाता है। इसमें सभी सामग्रीओं का एक निर्धारित मात्रा में होना ज़रूरी है। इन सामग्रियों में मौजूदा चीज़ें होती हैं जैसे शंखपुष्पी, बदामगिरि, खसखस, सूखा धनिया आदि।
ब्राह्मी चूर्ण बनाने के लिए किस सामग्री की कितनी कितनी मात्रा होनी चाहिए?
ब्राह्मी - (10 ग्रा
शंखपुष्पी - (3 ग्रा)
बादामगिरी - (2.5 ग्रा)
खसकस व सूखा साबुत धनिया - (10 ग्रा)
त्रिफला - (5 ग्रा)
गोखरू - (10 ग्रा)
शतावर - (5 ग्रा)
अश्वगंधा - (5 ग्रा)
सौंठ - (10 ग्रा)
इसमें त्रिफला होने के कारण यह पेट साफ़ करने, खून साफ़ करने व् त्वचा को बेहतर बनाने में कारगर है। ब्राह्मी में प्रतिऑक्सीकारक (Antioxidant) की मौजूदगी की वजह से यह कई बिमारियों से बचाव में काम आता है जैसे दिल से सम्बंधित रोग व् कैंसर।
गोली के मुकाबले चूरन जल्दी पचता है इसी कारण से इसका प्रभाव शरीर पे जल्दी होता है, इस कारण से कुछ लोग ब्राह्मी को चूर्ण के रूप में लेना बेहतर समझते हैं।
प्रतिऑक्सीकारक या प्रतिउपचायक वे यौगिक हैं जिनको अल्प मात्रा में दूसरे पदार्थो में मिला देने से वायुमडल के ऑक्सीजन के साथ उनकी अभिक्रिया का निरोध हो जाता है। इन यौगिकों को ऑक्सीकरण निरोधक (Oxidation inhibitor) तथा स्थायीकारी भी कहते हैं। इस तरह की चीज़ों का सेवन करने से यह शरीर के भीतरी अंगों में ऑक्सीकरण होने से बचाती हैं।
ब्राह्मी चूर्ण को चिकित्सक द्वारा बतायी गयी मात्रा से ज़्यादा लिए जाने पर इसके कुछ दुष्प्रभाव भी हो सकते हियँ जैसे की-
मुँह में खुश्की होना- इसकी तासीर ठंडी होती है इसके ज़्यादा सेवन से मुँह में खुश्की हो सकती है इसी कारण से कुछ चिकित्सक यह भी कहते हैं कि जब आप आयुर्वेदिक दवाइयां ले रहे हों अपनी पानी की खुराक बढ़ा देनी चाहिए।
दस्त - इसके ज़्यादा सेवन से दस्त भी लग सकते हैं।
उलटी आना - इसके ज़्यादा सेवन से उलटी भी लग सकती हैं।
यह शरीर पर ऊपर से लगाया जाता है, आमतौर पर इसे खोपड़ी पर लगाया जाता है।
यह शरीर पर लगाया जाये तो वात को कम करता है ।
यह खोपड़ी पर लगाया जाये तो मस्तिक्ष शांत रहता है,बालों की मज़बूती बढ़ाता है व् टूटने से बचाता है, रूसी हो तो उसे भी भगाता है ।
इसके लगातार इस्तेमाल से त्रिदोष संतुलन में सहायता मिलती है।
- यह ब्राह्मी का वह स्वरुप है जो ब्राह्मी, शंखपुष्पी और घी मिलाकर बनाया जाता है, यह बगैर चिकित्सक की सलाह के भी उपलब्ध हो जाता है। यह सर दर्द, बदहज़मी से बचाव और अच्छी नींद के लिए लिया जाता है।
इसे गुनगुने पानी के साथ लिया जाता है ।
ये बच्चे, जवान व् बुज़ुर्ग सभी के लिए लाभदायक है ।
इसे दिन में कभी भी लिया जा सकता है पर खाने से पूर्व लिया जाए तो सबसे ज़्यादा असरदार होता है ।
यह एक बार में ५ ग्राम से अधिक नहीं लिया जाना चाहिए।
अश्वगंधा भी ब्राह्मी की तरह आयुर्वेद की दुनिया में एक सबसे प्रचलित जड़ी बूटी है। अश्वगंधा शरीर की ताकत बढ़ाता है व् मर्दों में उपजाऊपन बढ़ाने में भी कारगर होता है। इन दोनों को साथ लेने से यह इंसान में दिमाग के काम करने की क्षमता को बढ़ाते हैं। व् बुद्धि की ताकत बढ़ाते हैं।
इन दवाइयों के दुष्प्रभाव कम सामने आये हैं इस कारण से यह सबसे ज़्यादा प्रचलित हैं आयुर्वेद में।
- ब्राह्मी का सेवन कई घरों में शरबत के रूप में भी किया जाता है। इसे बनाना बेहद आसान है इसके लिए ब्राह्मी के पौधे के पत्तों को कूट लें, और एक कप ठन्डे पानी में या गरम पानी में ,एक चम्मच शहद के साथ मिला लें। आप इसमें अपने स्वादानुसार काली मिर्च भी डाल सकते हैं।
यह शरबत रूप में लेने से इसको स्वादिष्ठ बनाया जा सकता है जिससे इसे बच्चों को देने में आसानी हो और इस तरह इसे अपनी रोज़ाना दिनचर्या का भाग सहज की बनाया जा सकता है।&
इसमें काली मोर्च होने के कारण यह गले के लिए लाभदाई होता है।
यह शरीर में रोग-प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाता है और लम्बे समय तक जवान रखता है।
यह अस्थमा से बचाव में भी कारगर है।
यह मानसिक मुस्तैदी बढ़ाता है।
- ब्राह्मी को दूध में मिलकर इसका टॉनिक भी बनाया जा सकता है इसका मैं पर अच्छा प्रभाव होता है। इसे दूध में मिलाकर लेने से यह मन पर एक शांत प्रभाव पोहचता है।
ब्राह्मी की पत्तियों को पीस लें और एक गिलास गरम दूध में मिला लें। इसे स्वादिष्ट बनाने के लिए इसमें शहद मिला लें।
इसे रात को सोने से पहले लिया जाए तो सबसे ज़्यादा लाभदायक होता है।
- यह कर्नाटक का एक परम्परागत पकवान है जो सिर्फ पौष्टिक ही नहीं स्वादिष्ट भी होता है।
१ कप में ब्राह्मी की पत्तियां
१ चम्मच जीरा
६ – ८ काली मिर्च के दाने
१ हरी मिर्च , ( usually they are made less spicy )
१/२ कप घिसा हुआ गोला
१-१.५ कप खट्टा दही
नमक
पहले ब्राह्मी की पत्तियों को धो के साफ़ कर लें।
एक फ्राई पैन में कुछ बूँद घी डालें उसमे जीरा, काली मिर्च, हरी मिर्च डाल के भून लें।
ब्राह्मी की पत्तियों को गोले, भुने हुए जीरे और मिर्च के मसाले व् नमक के साथ मिक्सर में अच्छे से चला लें और उसमे थोड़ा पानी मिलकर उसका पेस्ट बना लें।
उस पेस्ट को एक कटोरे में डाल लें और उसमे खट्टा दही मिला लें।
बचे हुए घी को गरम कर लें, उसमे सरसो के बीज मिला लें और जीरा मिला लें और थोड़ी देर बाद कढ़ी-पत्ता दाल लें, अब इसे थंब्ली पर डाल लें।
अब इसे चावल के साथ लेलें या ऐसे ही पी लें।
पकवान के रूप में होने के कारण इसके माध्यम से ब्राह्मी का सेवन सहज हे हो जाता है।
ब्राह्मी की तरफ नजरिया सिर्फ दवाई के तौर पर नहीं बल्कि एक स्वादिष्ट भोज रूप में बनता है।
हाजमे के लाभदायक है।
याददाश्त के लिए अच्छा है।
२ कप ब्राह्मी की पत्तियां
१ प्याज
४ छोटे लस्सान के टुकड़े
१ छोटा टुकड़ा अदरक
१ चम्मच ताज़ा क्रीम
१ चम्मच जीरा
१/२ चम्मच काली मिर्च
१ चम्मच चावल का आटा
३० ग्राम मक्खन
१ चम्मच नमक
५०० मि ली पानी
बनाने की विधि
ब्राह्मी की पत्तियों को एक कटोरे में धो के साफ़ करलें, ऊपर से काली मिर्च और जीरा डाल के मिला लें।
एक पैन में मक्खन दाल के गरम कर लें ऊपर से उसमे प्याज, लस्सन, और ब्राह्मी की बत्तियों का पेस्ट डाल के मिला लें और तब तक गरम होने दें जब तक वह मुलायम न हो जाये।
अब इसे दुसरे पैन में डाल कर उसमे पानी, नमक, जीरा, मिर्च, चावल का आटा मिला लें और धीमी आंच पे पकने दें।
अब वह उबाल जाए उसे एक कटोरी में डाल लें ऊपर से क्रीम डाल लें और आपका शोरबा तैयार।
आधुनिक विज्ञान के हिसाब से इसके दो मत मलते हैं, एक तो यह की ऐसे सबूत कम पाए गए हैं जो साबित करे की ब्राह्मी किसी भी तरह के मानसिक रोग को ठीक करने में सक्षम है। हालाँकि इसे नींद को सुधारने में सक्षम माना गया है। आधुनिक विज्ञान में इस पर शोध काफी कम हुआ है जिसके कारण यह भी माना जाता है की ब्राह्मी के दुष्प्रभाव जितना हम जानते हैं उससे ज़्यादा हो सकते हैं।
दूसरा इसका विपरीत है क्योंकि एक पेपर में ऐसा भी पाया गया है कि यह खाली मेहतर अणुओं को बढ़ावा देता है और मस्तिष्काग्र की बाह्य परत , हिप्पोकैम्पस, व् स्ट्रिएटम में कोशिकाओं का विषाक्तता से बचाव करता है। इस खूबी के कारण यह एल्ज़िमर जैसी बिमारी में सहायक पाया गया है।
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